09-03-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

न्यारा-प्यारा, वन्डरफुल, स्नेह और सुखभरा अवतरण - शिव जयन्ती

व्रत, जागरण और बलि के यथार्थ स्वरूप में स्थित कराने वाले शिव भोलानाथ बाबा अपने सालिग्राम बच्चों प्रति बोले-

त्रिदेव रचता बाप अपने पूज्य सालिग्राम बच्चों से मिलने आये हैं। जैसे आज बिन्दु ज्योति स्वरूप बाप की पूजा होती है, यादगार मनाते हैं तो बाप के साथ-साथ आप सालिग्राम आत्माओं की भी पूजा होती है। बाप एक त्रिमूर्ति शिव गाया और पूजा जाता है और आप सालिग्राम आत्मायें अनेक हो। पूजा दोनों की होती है। क्योंकि बाप ने सभी बच्चों को अपने समान पूज्य बनाया है। कभी भी सालिग्राम को देखते हो तो क्या अनुभव करते हो? ये हम ही हैं-ऐसे लगता है? तो बाप ने बच्चों को समान तो क्या लेकिन अपने से भी श्रेष्ठ पूज्य बनाया है। बच्चों की पूजा डबल रूप में होती है। बाप की पूजा एक ही शिवालिंग के रूप में होती है। आप बच्चों की सालिग्राम के रूप में भी होती है और देव आत्माओं के रूप में भी होती है। बाप से भी ज्यादा डबल रूप के पूजा के अधिकारी आत्मायें आप हो। जैसे डबल विदेशी कहलाते हो तो डबल पूज्य भी हो। डबल ताजधारी भी आप बनते हो। निराकार बाप नहीं बनते। कहाँ-कहाँ भक्त लोग शिव की प्रतिमा को ताज डाल देते हैं। क्योंकि ताजधारी बनाया है इसलिये कहाँ-कहाँ ताज दिखा देते हैं। लेकिन बाप कभी भी रत्न जड़ित सोने-चाँदी के ताजधारी नहीं बनते। क्योंकि ताज धारण होता है प्रैक्टिकल में, मस्तक में। तो निराकार बाप को मस्तक है क्या? शरीर ही नहीं है तो ताज क्या धारण करेंगे! लेकिन स्नेह के कारण ताज दिखा देते हैं। तो बाप ने बच्चों को अपने से भी आगे रखा है। इतनी खुशी और इतनी श्रेष्ठ स्मृति रहती है? बापदादा को अपनी जयन्ती मनाने की खुशी नहीं है लेकिन आप सबकी भी जयन्ती है, इसलिये बच्चों की जयन्ती की खुशी है। क्योंकि बाप अकेला कुछ नहीं कर सकता और आप भी अकेले कुछ नहीं कर सकते। चाहे कहीं-कहीं कोई-कोई बच्चों को थोड़ा आ जाता है कि मैं ही करने वाला हूँ लेकिन सिवाए बाप के सफलता नहीं मिलती। तो न बाप अकेला कुछ कर सकता, न बच्चे अकेले कुछ कर सकते हैं। अगर बाप बच्चों से मिलन मनाने भी साकार में चाहे वा आकार में भी चाहे तो ब्रह्मा का आधार लेना ही पड़ता है। ब्रह्मा के बिना भी कुछ कर नहीं सकता। माध्यम के बिना साकार मिलन नहीं मना सकता। तो कितना प्यार बाप का बच्चों से है और बच्चों का बाप से है! एक-दो के बिना कुछ नहीं कर सकते। अगर बाप को किनारा किया, साथ नहीं रखा तो अकेले कुछ कर सकते हो। बाप कर सकता है? बाप भी नहीं कर सकता। तो ये बाप और बच्चों का साथ-साथ दिव्य जन्म लेना, साथ-साथ विश्व परिवर्तन करना और साथ-साथ अपने स्वीट होम में जाना-ये ड्रामा की अविनाशी नूँध है। इसको कोई बदल नहीं सकता। तो यह नूँध अच्छी है ना, प्यारी लगती है ना?तो आज सब बाप का बर्थ डे मनाने आये हो या अपना? बाप कहेंगे आपका और बच्चे बाप को कहेंगे कि आपका।

ये दिव्य अवतरण, जिसको शिव जयन्ती वा शिवरात्रि कहते हैं, कितना आत्माओं के लिये स्नेहभरा, सुखभरा अवतरण है। सतयुग में भी ऐसा बर्थ डे नहीं मनायेंगे। आत्मायें, आत्माओं का बर्थ डे मनायेंगी लेकिन इस समय आत्मायें परम आत्मा का बर्थ डे मनाती हैं। सारे कल्प में ऐसा न्यारा और प्यारा, वन्डरफुल बर्थ डे, जो एक ही समय पर बाप का भी हो और बच्चों का भी हो - ऐसा कभी होता है क्या? अगर तारीख एक भी होगी तो वर्ष का या मास का या डेट का अन्तर होगा। लेकिन ये अवतरण दिवस कितना वन्डरफुल है जो बाप और बच्चों का साथ-साथ है।

इस यादगार दिवस पर विशेष भक्त लोग भी दो विशेषताओं से ये दिवस मनाते हैं। दो विशेषतायें कौन-सी हैं? एक-विशेष व्रत धारण करते हैं और दूसरा-स्वयं को समार्पित न करते हुए और किसी को बलि चढ़ाते हैं। तो बलि चढ़ाना और व्रत धारण करना ये दोनों विशेषताएं इस दिवस की हैं। अनेक प्रकार के व्रत धारण करते हैं। चाहे कोई भोजन का करते हैं, कोई जागरण का करते हैं, कोई दूर-दूर से पैदल करते हुए चलने का करते, कितना भी थक जायें लेकिन व्रत अपना पूरा करते हैं। चाहे कितने दिन भी लग जायें, कितना समय भी लग जाये लेकिन व्रत नहीं छोड़ते। तो यह यादगार किससे कॉपी की? आपका है ब्राह्मण जीवन का व्रत और भक्तों का है एक दिन का व्रत। आपने भी जब ब्राह्मण जन्म वा दिव्य बर्थ लिया तो क्या व्रत लिया? सदा अज्ञान नींद से जागरण का व्रत लिया ना कि थोड़ा-थोड़ा नींद करेंगे यह व्रत लिया? वा थोड़े-थोड़े झुटके खा लेंगे ऐसे तो नहीं किया? तो आप सभी ने भी शिव जयन्ती वा दिव्य बर्थ डे पर जागरण का व्रत लिया इसलिये भक्त भी यादगार रूप में जागरण करते हैं। और आप सबने भी शुद्ध भोजन का व्रत लिया। इसलिए भक्त लोग भी, कुछ भी हो जाये, चाहे बीमार भी हो जाते हैं तो भी अन्न के व्रत को तोड़ेंगे नहीं। तो आप सब भी कोई भी मन के आगे, तन के आगे, परिस्थितियाँ आ जायें तो व्रत तोड़ते हो क्या? कभी कुछ मिक्स खा लिया-ऐसे करते हो क्या? कोई देखता तो है नहीं, चलो खा लिया, अपना नियम पक्का रखते हो ना कि कच्चे हो? कभी-कभी देखकरके थोड़ी दिल होती है? एक ही जैसा खाना खाते-खाते कभी दूसरा भी खाने की दिल होती है? अच्छा, इसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूरोप, एशिया वा रशिया सभी पक्के हो ना या थोड़ा-थोड़ा कच्चे हो?

तो डबल विदेशी सभी पास हो गये और भारत वाले तो पास हैं ही ना!भारत वालों को फिर भी सहज है। डबल विदेशियों को इसमें डबल मेहनत भी है। लेकिन पास हो इसकी मुबारक। तो एक बर्थ डे की मुबारक, दूसरी पास होने की मुबारक और तीसरी कभी भी हलचल में न आए सदा अचल रहना, इसमें पास हो? इसमें कह देते हैं-क्या करें-सम-टाइम। आज बापदादा ने डबल विदेशियों के लिये बहुत रमणीक भाषा इमर्ज की, क्योंकि डबल विदेशी एंज्वाय ज्यादा पसन्द करते हैं ना। कुछ होना चाहिये, कुछ एंज्वाय हो, ऐसे शान्त-शान्त क्या रहें। तो बापदादा शिवरात्रि पर इन शब्दों का सभी से दृढ़ व्रत कराते हैं। व्रत लेने के लिये तैयार हो? या जब सुनेंगे तब कहेंगे कि ये तो थोड़ा, थोड़ा मुश्किल है। पहले तो ‘मुश्किल’ शब्द संकल्प में भी नहीं लायेंगे-यह व्रत लेने के लिये तैयार हो? तो बापदादा ने देखा कि जब तक संकल्प में दृढ़ता नहीं तब तक सफलता नहीं होती। संकल्प होता है लेकिन दृढ़ नहीं होता तो कमज़ोरी आती है। बहुत करके कमज़ोरी के यही शब्द कहते हैं कि क्या करें - व्हाट। तो अभी व्हाट नहीं कहना लेकिन व्हाट के बजाय क्या कहेंगे? फ्लाय (उड़ना)। तो जब भी व्हाट शब्द आये तो ब्राह्मण डिक्शनरी में व्हाट के बजाए फ्लाय शब्द है। दूसरा शब्द क्या बोलते हो? व्हाई (क्यों), तो व्हाई को क्या करेंगे? बॉय-बॉय। सदा के लिये बॉय-बॉय करेंगे या थोड़े टाइम के लिये? और तीसरा शब्द क्या बोलते हैं? हाउ। तो हाउ (How) नहीं, नो (Know), जानते हैं, कैसे नहीं, नो अर्थात् जानने वाले। जब त्रिकालदर्शी बन जायेंगे, जानने वाले बन जायेंगे तो फिर हाउ कहेंगे क्या? हाउ कहना माना हौव्वा आना। तो हौव्वा अच्छा लगता है क्या? इसीलिये यही शब्द हैं जो कमज़ोरी लाते हैं। यही शब्द हैं जो व्यर्थ संकल्प का गेट खोलते हैं। सोचो, जब भी व्यर्थ संकल्पों की क्यू लगती है तो किस शब्द से लगती है? इन्हीं शब्दों से लगती है ना। या क्यों होगा, या क्या वा कैसे होगा। ये कैसे हुआ! ये कैसे कहा! ये क्यों कहा! अब क्या करें! ... कैसे करें! तो कमज़ोरी के या व्यर्थ संकल्पों के गेट ये शब्द हैं। इसको डिक्शनरी में चेंज कर दो। फिर क्या होगा? आप भी चेंज हो जायेंगे ना। तो भक्त लोग आपको ही कॉपी कर रहे हैं। आपकी बेहद की बात है और उन्होंने हद के रूप में यादगार रखा है। तो यह दृढ़ व्रत रखना-यही शिव जयन्ती वा शिवरात्रि मनाना है। मनाना अर्थात् बनना। ऐसे नहीं, सिर्फ केक काट लिया लाइट जला ली, दीपक जला लिया, तो ये मनाना नहीं, ये मनोरंजन भी आवश्यक है लेकिन इसके साथ-साथ कुछ काटना है और कुछ जलाना भी है।

एक तरफ दीपक वा मोमबत्ती जलाते हो, दूसरा केक काटते हो, तीसरा झण्डा लहराते हो, चौथा-गीत गाते हो, पांचवा-डांस भी करते हो। और क्या करते हो? मीठा बांटते और खाते हो। तो अभी ये 6 बातें ही करनी पड़ेंगी। पहले तोदृढ़ संकल्प का अपने मन में दीप जलाओ कि अब से दृढ़ता द्वारा सफलता को पाना ही है। देखेंगे, पता नहीं, पता नहीं, नहीं। होना ही है, करना ही है, गे शब्द नहीं, है। और दूसरा केक कौन-सा काटेंगे? केक पूरा नहीं खाया जाता, काटकर खाया जाता है। तो क्या काटेंगे? जो भी सम्पन्न बनने में या सम्पूर्ण बनने में कोई भी संकल्प मात्र भी रूकावट हो उसको अब से काट लो, खत्म। और जो कमज़ोरी हो उसके बजाय शक्ति धारण करने का केक मुख में डालो। पहले काटो, फिर मुख में खाओ। समझा? झण्डा कौन-सा लहरायेंगे? ये तो यादगार के रूप से झण्डा लहराते हैं लेकिन अपने दिल में बाप को हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा सदा प्रत्यक्ष करने का झण्डा दिल में लहराओ। कोई भी संकल्प, बोल और कर्म ऐसा नहीं हो जो बाप को प्रत्यक्ष करने का नहीं हो। क्योंकि सबके दिल में बाप के स्नेह के कारण यही संकल्प है कि बाप को प्रत्यक्ष करना है। तो कैसे करेंगे?सदा अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्ष करने का झण्डा लहराओ और सदा खुश रहने की डांस करते रहो। कभी खुश, कभी उदास-यह नहीं। जब उदास होते हो तो उस समय भी अपना एक फोटो निकालो। और जब खुश होते हो तो भी फोटो निकालो। फिर दोनों फोटो साथ रखो। फिर देखो अच्छा क्या है?मैं ये हूँ या वो हूँ? तो सदा हर्षित रहने का, खुश रहने का डांस करो। कुछ भी हो जाये, कोई कितना भी खुशी चुराने की कोशिश करे। क्योंकि माया किसी के द्वारा ही तो करायेगी ना। कुछ भी हो जाये, कितना भी कोई किसी भी प्रकार से खुशी कम करने या खुशी गुम करने का प्रयत्न करे लेकिन जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। यह पक्का व्रत लिया है ना। क्या नहीं कर सकते हो, विल पॉवर है ना? तो जिसके पास विल पॉवर है वो क्या नहीं कर सकता अगर आप मास्टर सर्वशक्तिमान नहीं कर सकेंगे तो और कौन करेगा! कोई और पैदा होने वाले हैं या आप ही हो? माला के मणके आपको ही बनना है या औरों का इंतजार कर रहे हो? फर्स्ट डिवीजन में आना है ना कि सेकण्ड भी चलेगा? तो यह दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत लो कि जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। और जो खुश रहेगा वो खुशी की मिठाई बांटता रहेगा। उस मिठाई से तो सिर्फ मुख मीठा होता है और इससे मन, तन, दिल सब खुश हो जाते हैं। तो यह मीठा बांटना है। और गीत सदा क्या गाते हो? मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा-यही गीत गाते हो ना सदा यह गीत ऑटोमेटिक बजता रहे। ऐसे नहीं, सेल खत्म हो जाये तो गीत खत्म हो जाये। बैटरी स्लो हो जाये। नहीं। जब बैटरी स्लो होती है, तो पता है कैसे गीत गाते हो? सबको अनुभव तो है ना। फिर क्या होता है? मेरा है तो बाबा, तो तो आ जाता है। सिर्फ मेरा बाबा नहीं कहेंगे, मेरा है तो बाबा। मिक्स हो गया ना। बैटरी स्लो होती है तो आवाज स्लो हो जाता है और उसमें तो तो शब्द एड हो जाता है। मेरा बाबा फलक से नहीं, मेरा है तो बाबा।

तो शिवरात्रि मनाना अर्थात् ये दृढ़ व्रत लेना। ऐसी शिवरात्रि मनाई ना? या सोचकर पीछे जवाब देंगे! अच्छा, बहुत होशियार हो, अभी-अभी सोच लिया। डबल विदेशी हो इसीलिये डबल होशियार हो। अच्छा!

डबल विदेशियों ने मधुबन में कौन-सी विशेष सेवा की? क्या किया? ब्रह्मा बाबा को प्रत्यक्ष किया। स्टेम्प का फंक्शन मनाया। विशेष योग भी लगाया ना। पॉवरफुल योग लगाया तो विघ्न विनाशक हो गये ना। चाहे मधुबन निवासियों के योग ने, चाहे डबल विदेशियों के योग ने, चाहे चारों ओर ब्राह्मण बच्चों के योग ने कमाल की ना। क्योंकि चारों ओर सबका यह एक ही संकल्प था कि ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। फिर कोई ने भाग-दौड़ की सेवा की, कोई ने मंसा सेवा की, कोई ने वाचा सेवा की, लेकिन जिन्होंने जो भी योगयुक्त होकर सेवा की ऐसे सेवाधारियों को सफलता की मुबारक। कितनी खुशी हुई! क्योंकि ब्रह्मा बाप से सबका दिल का अति सूक्ष्म प्यार है। सभी ने ब्रह्मा बाप को देखा है या जानते हो? क्या कहेंगे-देखा है या जाना है? जो कहते हैं हमने देखा है वह हाथ उठाओ। जो कहते हैं जाना तो है लेकिन अभी देखना है वो हाथ उठाओ। (थोड़े लोगों ने उठाया) अच्छा, अनुभव किया है? ब्रह्मा हमारा बाप है यह अनुभव किया है?क्योंकि अनुभव भी एक आंख है, जैसे स्थूल आंखों से देखा जाता है तो सबसे बड़ी आंख है अनुभव। अनुभव की आंख से देखा तो भी देखा कहेंगे। अगर अनुभव भी नहीं किया और अव्यक्त रूप से, अव्यक्त स्थिति द्वारा देखा नहीं तो फिर अपना नाम दादियों को नोट कराना तो वो अनुभव करा देंगी। रह नहीं जाना। क्योंकि दूसरों को स्टैम्प द्वारा ब्रह्मा बाप का अनुभव करा रहे हो और खुद नहीं करो तो अच्छा नहीं है ना। इसलिये जब ब्रह्मा बाप के चित्र के आगे बैठते हो तो चित्र से चैतन्यता के मिलन की, अनुभव की अनुभूति नहीं होती है? रूहरिहान का रेसपॉन्स नहीं मिलता है? मिलता है ना। तो बाप है तभी तो सुनता है और देता है। फिर भी इस अनुभव से वंचित नहीं रह जाना। समझा? तो सभी ने जो सेवा की, विशेष भारतवासियों ने ज्यादा सेवा का चांस लिया तो बापदादा नाम नहीं लेते हैं लेकिन सभी अपने सेवा के रिटर्न में नाम सहित मुबारक स्वीकार करें। डबल विदेशियों को भी सेवा का चांस मिल गया। अच्छा लगा ना! नाच रहे थे ना! अच्छा!

चारों ओर के ब्राह्मण जन्म के दिव्य जन्म के अधिकारी आत्माओं को, सदा बाप और आप साथ-साथ रहने वाले समीप आत्माओं को, सदा डबल पूज्य स्वरूप के स्मृति में रहने वाले समर्थ आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प वा दृढ़ व्रत को निभाने वाले सफलता के अधिकारी आत्माओं को, सदा खुश रहने वाले और औरों को भी खुश करने वाले खुशनसीब बच्चों को, त्रिदेव रचता बाप की और ब्रह्मा बाप की विशेष बर्थ डे की मुबारक भी हो और याद-प्यार भी। साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।

दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात -

(दादी जी ने ब्रह्मा बाबा की स्टेम्प का एलबम बापदादा को दिखाया)

सबके बुद्धियों को टच किया है। सबके पुरूषार्थ और सबके श्रेष्ठ संकल्प ने विजय प्राप्त करा ली। सफलता अधिकार है। पुरूषार्थ करना भी ड्रामा में नूँध है और सफलता प्राप्त होना भी निश्चित है। सिर्फ निश्चय को देखने के लिये बीच-बीच में हलचल होती है। तो अनुभव किया, योग के प्रयोग से सहज हो गया ना। सिर्फ पुरूषार्थ से नहीं, पुरूषार्थ में ज्यादा लग जाते, योग का प्रयोग कम करते तो सफलता थोड़ी दूर हो जाती है। पुरूषार्थ और योग के प्रयोग से सबकी वृत्तियों को परिवर्तन करना-ये साथ-साथ रहता है तो सफलता समीप आती है। तो योग के प्रयोग का यह भी अनुभव देख लिया। एक दृढ़ निश्चय और दूसरा प्रयोग द्वारा किसी की भी बुद्धि को परिवर्तन कर सकते हैं लेकिन इतना पॉवरफुल योग हो। यह संगठन के प्रयोग ने सफलता प्रत्यक्ष रूप में दिखाई। हिस्ट्री में देखो, आदि से सेवा की हिस्ट्री में जब भी कोई हलचल हुई है तो सफलता योग के प्रयोग की विशेषता से ही हुई है। पुरूषार्थ निमित्त बनता है, पुरूषार्थ धरनी बनाता है, वो भी जरूरी है। लेकिन सफलता का बीज उत्पन्न होने का साधन, बाहर आने का साधन फिर भी योग का प्रयोग ही रहा। यह सबको अनुभव है ना। धरनी को बनाना भी जरूरी है लेकिन बीज से फल प्रत्यक्षरूप में आये उसके लिये बैलेन्स चाहिये। बैलेन्स में जरा भी, 5%, 10% भी कमी पड़ती है तो फर्क हो जाता है। लेकिन सभी ने उमंग-उत्साह से सहयोग दिया और सफलता प्राप्त की। तो बापदादा सभी बच्चों को सफलता की मुबारक देते हैं। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

डबल विदेशियों भाई बहनों से

ग्रुप नं. 1

स्वयं और समय पर भरोसा नहीं-इसलिए दृढ़ संकल्प से कमज़ोरियों को निकाल दो

सभी अपने को विश्व सेवाधारी अनुभव करते हो? विश्व सेवाधारी वा विश्व कल्याणकारी वही बन सकता है जिसके पास सर्वशक्तियों का खज़ाना सम्पन्न है। तो सर्वशक्तियों का स्टॉक जमा है? सर्वशक्तियाँ हैं वा कोई शक्ति है, कोई नहीं है? कभी-कभी कोई कम हो जाती है? सदा अपने आपको चेक करो कि सर्वशक्तियां हैं वा कोई शक्ति की कमी है? अगर कमी है तो उसके कारण को सोचो। क्योंकि कारण को समझेंगे तो निवारण कर सकेंगे। क्योंकि ये माया का नियम है कि जो कमज़ोरी आपमें होगी उसी कमज़ोरी के द्वारा ही आपको मायाजीत बनने नहीं देगी। तो वर्तमान समय भी समय प्रति समय माया उसी कमज़ोरी का लाभ लेगी और आगे चलकर जब अन्त समय आयेगा तो भी वो कमज़ोरी धोखा दे देगी। तो ऐसे नहीं सोचना कि थोड़ी सी कमज़ोरी है, एक ही कमज़ोरी है, बाकी तो बहुत अच्छा हूँ, अच्छी हूँ! एक कमज़ोरी भी धोखा दे देगी। इसलिये कोई भी कमज़ोरी अपने अन्दर रहने नहीं दो। अगर स्वयं नहीं मिटा सकते हो तो कोई का सहयोग लो, जो शक्तिशाली आत्मायें हैं, उनका सहयोग लो। विशेष योग का प्रयोग करो। किसी भी विधि से कमज़ोरी को मिटाना ही है-यह दृढ़ संकल्प करो। यह भी नहीं सोचो कि आगे चलकर हो जायेगा। नहीं, अभी से निकाल दो। क्योंकि स्वयं पर और समय पर कोई भरोसा नहीं है। ऐसे नहीं सोचो कि आगे चलकर ये करेंगे, हो जायेगा। नहीं। आपका सलोगन है ‘अब नहीं तो कब नहीं’ तो जो करना है वो अभी करना है। क्योंकि बाप सम्पन्न है और आपका बाप से प्यार है तो बाप जैसा बनना ही प्यार का प्रैक्टिकल स्वरूप है। जितना बाप से बहुत-बहुत प्यार है इतना ही पुरूषार्थ से भी बहुत-बहुत प्यार है?जितना बाप से प्यार के लिये फलक से कहते हो कि 100% से भी ज्यादा प्यार है, ऐसे पुरूषार्थ के लिये भी कहो। सोचेंगे, करेंगे.. नहीं। सब कमज़ोरियां खत्म। गें, गें नहीं। शिवरात्रि मनाने आये हो तो कुछ तो बलि चढ़ेंगे ना। बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न देखना चाहते हैं। बाप का प्यार है इसलिए बच्चों की कमी अच्छी नहीं लगती। तो क्या याद रखेंगे कि सदा सम्पन्न, सम्पूर्ण रहना ही है कि थोड़ी-थोड़ी कम्पलेन करते रहेंगे? कम्पलीट! कम्पलेन खत्म। सम्पन्न बनना ही मनाना है।

ग्रुप नं. 2

वेस्ट को बेस्ट बनाना अर्थात् होलीहंस बनना

सभी अपने को सदा होली हंस अनुभव करते हो? होली हंस का अर्थ है संकल्प, बोल और कर्म जो व्यर्थ होता है उसको समर्थ में बदलना। क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होली हंस बनना। तो व्यर्थ आता है? होली हंस फौरन परख लेता है कि ये काम की चीज़ नहीं है, ये काम की है। तो आप होली हंस हो ना। तो व्यर्थ समाप्त हुआ? क्योंकि अभी नॉलेजफुल बने हो कि अगर अभी संकल्प, बोल या कर्म व्यर्थ गंवाते हैं तो सारे कल्प के लिये अपने जमा के खाते में कमी हो जाती है। जानते हो ना, नॉलेजफुल हो? तो जानते हुए फिर व्यर्थ क्यों करते हो? चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है-ऐसे कहेंगे? जो समझते हैं अभी भी हो सकता है वो हाथ उठाओ। आप हो कौन? (राजयोगी) राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना, तो मन को कन्ट्रोल नहीं कर सकते! किंग में तो रूलिंग पॉवर होती है ना! तो आप में रूलिंग पॉवर नहीं है? अमृतवेले और फिर सारे दिन में बीच-बीच में अपना आक्युपेशन याद करो-मैं कौन हूँ? क्योंकि काम करते-करते यह स्मृति मर्ज हो जाती है कि मैं राजयोगी हूँ। इसलिये इमर्ज करो। ये नियम बनाओ। ऐसे नहीं समझो कि हम तो हैं ही राजयोगी। लेकिन राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। नहीं तो चलते-चलते कर्म में बिजी होने के कारण योग भूल जाता है, सिर्फ कर्म ही रह जाता है। लेकिन आप कर्मयोगी कम्बाइन्ड हो। योगी सदा ही रूलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर में रहें। फिर राजयोगी डबल पॉवर वाले कभी भी व्यर्थ सोच नहीं सकते। तो अभी कभी नहीं कहना, सोचना भी नहीं कि राजयोगी वेस्ट कर सकते हैं। तो ये कौन-सा ग्रुप है? बेस्ट ग्रुप। बापदादा को भी बेस्ट ग्रुप अति प्यारा है क्यों? 63 जन्म बहुत वेस्ट किया ना, अभी यह छोटा-सा जन्म बेस्ट ही बेस्ट। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

प्योरिटी की रॉयल्टी ही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है

सभी ब्राह्मण जीवन की विशेषता वा फाउन्डेशन को जानते हो? क्या है? (प्योरिटी) यह पक्का है कि प्योरिटी ही फाउन्डेशन है? तो सभी पक्के ब्राह्मण हैं ना! प्योरिटी की रायल्टी ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। जैसे कोई रॉयल फैमिली का बच्चा होगा तो उसके चेहरे से चलन से मालूम पड़ता है कि यह कोई रायल कुल का है। ऐसे ब्राह्मण जीवन की परख यह प्योरिटी की झलक से ही होती है। और चेहरे वा चलन से प्योरिटी की झलक तब दिखाई देगी जब सदा संकल्प में भी प्योरिटी हो। संकल्प में भी अपवित्रता का नाम निशान न हो। तो ऐसे हैं या कभी संकल्प में थोड़ा सा प्रभाव पड़ता है? क्योंकि पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत नहीं। लेकिन प्योरिटी अर्थात् किसी भी विकार अर्थात् अशुद्धि का प्रभाव न हो। तो फाउन्डेशन पक्का है या कभी कभी क्रोध को छुट्टी दे देते हो? बाल बच्चा आ जाता या अंश और वंश सब खत्म। क्या समझते हो?माताओं में मोह आता है? बॉडी कॉन्शसनेस की अटैचमेंट है? कोई विकार का अंश मात्र भी नहीं। क्योंकि बड़ों से तो मोह वा लगाव जल्दी निकल जाता है, लेकिन छोटों-छोटों से थोड़ा ज्यादा होता है। जैसे लौकिक संबंध में भी बच्चों से इतना प्यार नहीं होगा जितना पोत्रों और धोत्रों से होता है। ऐसे विकारों के भी ग्रेट चिल्ड्रेन से प्यार तो नहीं है? फाउन्डेशन प्योरिटी है इसलिए इस फाडन्डेशन के ऊपर सदा ही अटेन्शन रहे। सबका लक्ष्य बहुत अच्छा है। तो जैसे लक्ष्य है वैसे ही लक्षण स्वयं को भी अनुभव हों और दूसरों को भी अनुभव हों। क्योंकि अनेक अपवित्र आत्माओं के बीच में आप पवित्र आत्मायें बहुत थोड़े हो। तो थोड़ी सी पवित्र आत्माओं को अपवित्रता को खत्म करना है। तो कितनी पावर चाहिए! तो सदा चेक करो कि अपवित्रता का अंश मात्र भी न हो। क्योंकि आपके जड़ चित्रों का भी सदा ही निर्विकारी कहकर गायन करते हैं। यह किसकी महिमा करते हैं? आपकी है या भारतवासियों की है? तो प्रैक्टिकल चेतन में बने हैं तब तो महिमा हो रही है। यह पक्का निश्चय है ना कि यह हम ही हैं! तो ब्राह्मण अर्थात् प्योरिटी की रॉयल्टी में रहने वाले। प्योरिटी ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। हिम्मत रखकर आगे बढ़ रहे हो और और भी आगे से आगे बढ़ना ही है। उड़ती कला वाले हो ना कि चलने वाली कला में हो? कभी नीचे ऊपर होते हो? सदा फाइन है या कभी-कभी फाइन? सम टाइम खत्म हुआ? अभी - रूहरिहान में तो आकर नहीं कहेंगे कि नहीं थोड़ा थोड़ा रह गया है? नहीं। अभी क्या रूहरिहान करेंगे? ओ.के.। ओ.के. कहने से ही देखो चेहरे मुस्कराते हैं। और जब समटाइम कहते हो तो आंखे नीचे हो जाती हैं। सदैव यह स्मृति में रखो कि अब नहीं बनेंगे तो कब बनेंगे। अभी बनना है। पुरूषार्थ करेंगे, देखेंगे, नहीं। होना ही है, तो इसको कहा जाता है निश्चय बुद्धि विजयी। तो कौन हो? प्योरिटी की रॉयल्टी में रहने वाले। अच्छा, सभी स्वयं को फर्स्ट डिवीजन वाली आत्मायें अनुभव करते हो?सदा फर्स्ट रहना है और सदा ही औरों को भी फास्ट गति से आगे बढ़ाना है।

ग्रुप नं. 4

सन्तुष्टमणि बनने के लिए अपने अनादि और आदि स्वरूप की स्मृति में रहो

सदा अपने अनादि और आदि स्वरूप को सहज स्मृति में ला सकते हो? अनादि रूप है निराकार ज्योति स्वरूप आत्मा और आदि स्वरूप है देव आत्मा। तो दोनों स्वरूप सदा स्मृति में रहते हैं और सहज स्मृति रहती है?जितना देहभान में रहना सहज है, उतना ही देही अभिमानी स्थिति में स्थित होना भी सहज है? बॉडी काँन्शस में कितने टाइम में आ जाते हैं? टाइम लगता है?न मेहनत लगती है, न टाइम लगता है। क्योंकि अभ्यास है। तो ऐसे ही जब अब नॉलेज मिली तो नॉलेज की लाइट, नॉलेज की माइट के आधार पर अभी सोल कॉन्शसनेस की स्मृति का ऐसा सहज अनुभव हो। यह भी अभ्यास करते-करते सहज हो गया है ना। या 63 जन्म का अभ्यास शक्तिशाली है? विस्मृति के 63 जन्म और स्मृति का यह एक छोटा-सा जन्म भी 63 जन्मों से शक्तिशाली है।

क्योंकि इस समय नॉलेज की लिफ्ट मिली हुई है तो लिफ्ट में पहुँचना सहज होता है। लिफ्ट से सेकण्ड में पहुँच जाते हो ना कि उतरते चढ़ते हो? सेकण्ड में स्मृति आई और अनुभव में टिक जायें। क्योंकि स्मृति शक्तिशाली है, विस्मृति कमज़ोर करती है। तो शक्तिशाली हो ना? कितनी पॉवर है? फुल है? पॉवर फुल है ना?पॉवर शब्द अलग नहीं कहते, पॉवरफुल कहते हैं। ऐसे बहादुर हो या कभी फेल, कभी फुल! हर कल्प में स्मृति स्वरूप बने हैं, अभी भी बने हैं और हर कल्प में बनते रहेंगे। कितने कल्पों का अभ्यास है? अनेक बार का अभ्यास है ना, अनेक बार किया है ना कि नई बात है? बाप का बनना अर्थात् परिवर्तन होना। ब्राह्मण बनना अर्थात् स्मृति स्वरूप बनना। इस अपने अनादि स्वरूप में स्थित होने से स्वयं भी स्वयं से सन्तुष्ट रहते और औरों को भी सन्तुष्टता की विशेषता अनुभव कराते हैं। तो सभी सन्तुष्ट मणियाँ हो या बनना है? असन्तुष्टता का कारण होता है अप्राप्ति। तो आपको कोई अप्राप्ति है क्या? आपका सलोगन क्या है? पाना था वो पा लिया। तो पा लिया कि थोड़ा-थोड़ा रह गया है? क्योंकि बाप का बनना अर्थात् वर्से का अधिकारी बनना। तो अधिकारी आत्मायें हो ना? तो सदा क्या गीत गाते हो? पा लिया .. ये आपका गीत है या कोई-कोई का है, कोई का नहीं है?सभी का है? कोई का दूसरा गीत हो तो बोलो। क्योंकि एक के हैं तो गीत भी एक ही है। और अब नहीं पाया तो कब पायेंगे? तो अपने को सदा पद््मापदम भाग्यवान समझो। पदम भी आपके आगे कुछ नहीं हैं। इतना नशा है ना? कितने भी साधन प्राप्त करने वाली आत्मायें हैं लेकिन जितने ही विनाशी प्राप्ति वाले हैं उतने ही अविनाशी प्राप्ति के भिखारी हैं। यह अनुभव है ना? जितने ज्यादा साधन होंगे उतनी शान्ति की नींद भी नहीं होगी। और आपकी जीवन कितनी शान्त है!कोई अशान्ति है? कभी तन वा मन की अशान्ति तो नहीं है? एवरहेल्दी है ना?माइन्ड भी हेल्दी तो हेल्थ भी हेल्दी। दोनों है ना? दुनिया के आगे चैलेन्ज करने वाले हो। अगर एवरहेल्दी देखना हो तो किसको देखें? आपको! हरेक कहता है मेरे को देखें या जानकी दादी को देखें-ऐसे तो नहीं कहते? आप ही हो ना?क्यों, बाप के खज़ानों के मालिक हो तो जो मालिक होता है वो सदा भरपूर, सम्पन्न होता है। तो ऐसे कम्पलीट हो या कम्पलेन और कम्पलीट-दोनों ही चलता है। तो यही सदा स्मृति में रखो कि अधिकारी हैं और अनेक जन्म अधिकारी रहेंगे। गैरन्टी है ना? यह सुख-शान्ति-पवित्रता का अधिकार जन्म-जन्म रहेगा। तो फलक से कहो एक जन्म तो क्या, अनेक जन्म के अधिकारी हैं। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

सहजयोग का आधार-संबंध और प्राप्ति

सभी अपने को सहज योगी आत्मायें अनुभव करते हो? सहज योग का आधार क्या है? विशेष दो बातें हैं। कौन-सी? सहज का आधार है - स्नेह, लेकिन स्नेह का आधार सम्बन्ध है। सम्बन्ध से याद करना सहज होता है और सम्बन्ध से प्यार पैदा होता है। और दूसरी बात है प्राप्तियाँ। जहाँ प्राप्ति होगी, चाहे अल्पकाल की भी प्राप्ति हो तो मन और बुद्धि वहाँ सहज ही चली जायेगी। तो मुख्य दो बातें हैं-सम्बन्ध और प्राप्ति। अनुभव है ना? वैसे भी देखो, ‘बाबा’ कहकर याद करो और ‘मेरा बाबा’ कहकर याद करो, तो फर्क पड़ता है? ‘मेरा’ कहने से सहज होता है ना। क्योंकि जहाँ मेरापन होता है वहाँ अधिकार होता है। और अधिकार होने के कारण अधिकारी को प्राप्ति जरूर होती है। तो सर्व सम्बन्ध है ना कि एक-दो नहीं हैं, बाकी सब हैं? और प्राप्तियां कितनी हैं? सब हैं ना। जब देने वाला दे रहा है तो लेने में क्या हर्जा है? (कौन-सी प्राप्तियां?) जो बाप ने शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का खज़ाना दिया, सुख-शान्ति, आनन्द, प्रेम, सब खज़ाने दिये। तो कितनी प्राप्तियां हैं! क्योंकि बाप के पास ये खज़ाने हैं ही बच्चों के लिये। तो बच्चे नहीं लेंगे तो कौन लेंगे? तो बच्चे हैं या नहीं हैं-यह भी सोच रहे हो? फिर अधिकार लेने में क्यों कमी करते हो? अगर अभी अधिकार नहीं लिया तो कब लेंगे? जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हैं, उन प्राप्तियों को सामने रखो। प्राप्ति को इमर्ज करने से प्राप्ति की खुशी की अनुभूति होगी। सिर्फ बाप मेरा है, नहीं, लेकिन बाप के साथ वर्सा भी मेरा है। बच्चे को प्रापर्टी की खुशी होती है ना। तो यह बेहद की प्रापर्टी है। बालक सो मालिक हूँ-इस खुशी में सदा रहो। कोटों में कोई और कोई में भी कोई जो गायन है वह किसका है? आप कोटों में कोई हो ना? बापदादा सभी बच्चों को इतना श्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं। दुनिया भटक रही है और आप मौज मना रहे हो। मौज में रहते हो ना कि अभी भी यहाँ वहाँ भटकते हो? ठिकाना मिल गया ना? तो दिन-रात खुशी में नाचते रहो, खुशी में सो जाओ। अगर जीवन है तो ब्राह्मण जीवन है। तो स्वयं के महत्व को सदा स्मृति में रखो। क्या थे और क्या बन गये! श्रेष्ठ बन गये ना। अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को कर्म करते हुए भी स्मृति में रखो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! दिल में यह आता है? इसलिये अपना बर्थ डे मनाने आये हो ना! अपना भी बर्थ डे मनाने आये या सिर्फ बाप का मनाने आये हो? ये दिव्य जन्म कितना न्यारा भी है और प्यारा भी है! क्योंकि बाप के प्यारे बने हो ना। जो भगवान् के प्यारे हैं उसके जीवन में प्यार हर समय है। तो दिल से यही गीत गाते रहो-वाह बाबा वाह और वाह मेरा भाग्य वाह! अच्छा!

बापदादा ने सभी बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात स्टेज पर खड़े होकर झण्डा लहराया तथा 58वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती की बधाई दी:-

आज के इस विशेष शिव जयन्ती के दिवस पर चारों ओर के बच्चों को हीरे तुल्य जयन्ती की हीरे तुल्य जीवन वाली आत्माओं को पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

प्योरिटी की रायल्टी ब्राह्मण जीवन की विशेषता है।

जैसे कोई रॉयल फैमिली का बच्चा होगा तो उसके चेहरे से चलन से मालूम पड़ता है कि यह कोई रायल कुल का है। ऐसे ब्राह्मण जीवन की परख यह प्योरिटी की झलक से ही होती है। और चेहरे वा चलन से प्योरिटी की झलक तब दिखाई देगी जब सदा संकल्प में भी प्योरिटी हो। संकल्प में भी अपवित्रता का नाम निशान न हो।